जो श्रावक आनन्दित होता हुआ जीवन के अंत में अर्थात् मृत्यु समय, शरीर, भोजन और मन, वचन, काय के व्यापार के त्याग से पवित्र ध्यान के द्वारा आत्मा की शुद्धि की साधना करता है, वह साधक कहा जाता है। जिसमें …
किसी प्रकार वैयाकरणीजन कर्त्ताकारक वाले ‘करोति’ और कर्म कारक वाले ‘क्रियते’ इन दोनों शब्दों में कारक भेद होने पर भी इनका अभिन्न अर्थ मानते हैं, कारण कि ‘देवदत्त कुछ करता है’ और ‘देवदत्त के द्वारा कुछ किया जाता है’, इन …