विशिष्ट या नाना प्रकार के पाप का नाम विपाक है। पूर्वोक्त कषायों के तीव्र, मंद आदि रूप भावास्रव के श्रोत से विशिष्ट पाप का होना सविपाक है, अथवा द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव लक्षण निमित्त भेद से उत्पन्न हुआ …
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