परमावधि व सर्वावधि विरत अर्थात् संयत के होता है, इसके उत्पन्न होने पर वह जीव न कभी मिथ्यात्व को प्राप्त होता है, न कभी असंयम को भी प्राप्त होता है। देशावधि, परमावधि और सर्वाधि ये तीनों ही गुणप्रत्यय है। अवधिज्ञान …
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु के शरीर के सब अवयव औषधि रूप हो जाते हैं वह सर्वौषधि – ऋद्धि हैं।