जो साधु अपनी आत्मा में रत हैं अर्थात् रुचि सहित हैं वे सम्यग्दृष्टि हैं। अपने को अपने से जानता हुआ यह जीव सम्यग्दृष्टि होता है। पदार्थों को हेय और उपादेय बुद्धि से जो जानता है वह सम्यग्दृष्टि है।
सम्यग्दर्शन युक्त जीव को सम्यग्दृष्टि कहते हैं जो चारों गतियों में होने संभव हैं। दृष्टि की विचित्रता के कारण इनका विचारण व चिंतवन सांसारिक लोगों से कुछ विभिन्न प्रकार का होता है, जिसे साधारण जन नहीं समझ सकते। सांसारिक लोग …
जिस कर्म के उदय से तत्त्व के विषय में जीवों के श्रद्धान और अश्रद्धान भाव युगपत् प्रगट हो उसे सम्यग्मिथ्यात्व कहते हैं। दही और गुड़ के मिले हुए स्वाद की तरह जीव एक ही समय में तत्त्व व अतत्त्व दोनों …