जघन्य व उत्कृष्ट भेद रूप द्रव्य क्षेत्र, काल एवं भावों में से किसी एक को विवक्षित करके उसमें शेष पद क्या उत्कृष्ट हैं क्या अनुत्कृष्ट है क्या जघन्य है और क्या अजघन्य है इस प्रकार की जो परीक्षा की जाती …
यदि सन्निकर्ष को प्रमाण माना जाता है तो सूक्ष्म व्यवहित विप्रकृष्ट पदार्थों का ग्रहण न करने का प्रसंग प्राप्त हो, क्योंकि इनका इन्द्रियों से सम्बन्ध नहीं होता। इसलिए सर्वज्ञता का अभाव हो जाता है । सन्निकर्ष को प्रमाण और अर्थ …
सम्मुख या निकट होना सन्निधिकरण है। पूजा करते समय पूज्य पुरूष को अपने हृदय में बिठाना सन्निधिकरण कहलाता है।
सान्निपातिक नाम का एक स्वतन्त्र भाव नहीं हैं संयोग भंग की अपेक्षा उसका ग्रहण किया। जैसे औदायिक औपशमिक मनुष्य और उपशान्त क्रोध जीव भाव सान्निपातिक है। एक ही गुणस्थान या जीवसमास में जो बहुत से भाव आकर एकत्रित होते है, …
एक ही गुणस्थान या जीव समास में जो बहुत से भाव आकर एकत्रित होते हैं उन भावों को सन्निपातिक भाव कहते हैं सन्निपातिक नाम का कोई एक स्वतंत्र भाव नहीं है संयोगज भंग की अपेक्षा इसका ग्रहण किया गया है। …