जो वचन प्रशस्त, कल्याणकारी और सुनने वाले को आह्लाद उत्पन्न करने वाला उपकारी हो वह सत्य है अथवा सज्जन पुरुषों के साथ श्रेष्ठ वचन बोलना सत्य धर्म है जो मुनि दूसरे को क्लेश पहुँचाने वाले वचनों को छोड़कर अपने और …
जिसमें वचन – 1- गुप्ति, वचन – संस्कार के कारण, वचन – प्रयोग, बारह प्रकार की भाषाएँ, दस प्रकार के सत्य वक्ता के प्रकार आदि का विस्तार से विवेचन है वह सत्य – प्रवाद नाम का छठवां पूर्व है।
समीचीन पदार्थ के विषय करने वाले मन को सत्यमन कहते हैं अथवा जहाँ जिस प्रकार की वस्तु विद्यमान हो वहाँ उसी प्रकार से प्रवृत्ति करने वाले मन को सत्यमन और उसके द्वारा जो योग ( अर्थात् आत्म प्रदेश परिस्पन्दन) होता …
दस प्रकार के सत्य वचन में वचन वर्गणा के निमित्त से जो योग होता है उसे सत्य वचन योग कहते हैं ।