जीव सहित पदार्थों को सचित्त कहते हैं अथवा जो चित्त (चेतना) सहित है वह सचित्त कहलाता है। सचित्त विरत श्रावक सचित्त वनस्पति आदि का सेवन नहीं करते। सूखी हुई, पकी हुई, तपायी हुई, खटाई या नमक आदि से मिश्रित वस्तु …
गुणयोग दो प्रकार हैसचित्तगुणयोग और अचित्तगुणयोग। सचित्तगुणयोग पाँच प्रकार का है- औदायिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायाकपशमिक और पारणामिक ।
जो कच्चे जल, फल, शाक सब्जी आदि नहीं खाता वह दया की मूर्ति सचित्त त्याग प्रतिमा धारी है। इस प्रतिमा का पालन करने वाला श्रावक जल, फल, शाक, सब्जी आदि को प्रासुक करके ही उपयोग में लेता है।
सचित्त कमल पत्र आदि पर रखा हुआ आहार देना सचित्त निक्षेप कहलाता है। यह अतिथिसंविभाग नामक शिक्षाव्रत का अतिचार है। I
आत्मा के चैतन्य विशेष रूप परिणाम को चित्त कहते हैं। जो उसके साथ रहता है वह सचित्त कहलाता है। साधारण शरीर वालों को सचित्त योनि होती है। प्रत्येक जन्म की सचित्त योनि होती है। संमूर्ध्न मनुष्य की सचित्त योनि होती …