जन उन्हीं अस्तित्वादि धर्मों की कालादिक की दृष्टि से अभेद विवक्षा होती है तब ऐ भी शब्द के द्वारा एक धर्म मुखेन तादात्म्य रूप से एकत्व को प्राप्त सभी धर्मों का अखण्ड भाव से युगपत् कथन हो जाता है, यह …
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