अपने वंश की प्रतिष्ठा के लिए अपने किसी योग्य पुत्र को कुल पद्धति और धन के साथ अपना कुटुम्ब समप्रित करना सकल-दत्ति या अन्वयदत्ति कहलाता है।
केवलज्ञान से जान लिये हैं सकल पदार्थ जिन्होंने ऐसे शरीर सहित अरहन्त भगवान सकल परमात्मा हैं। कल अर्थात् शरीर के साथ जो वर्ते सो सकल कहलाता है और सकल भी और आत्मा भी हो वह सकलात्मा कहलाता है।
मनुष्यादि के चार इन्द्रियों में श्रोतृ इन्द्रिय मिला पर पाँच इन्द्रियाँ होती है इसे ही सकलेन्द्रिय कहते हैं। वर्ण, रस, स्पर्श, गन्ध और शब्द को जानने वाले देव, मनुष्य, नारक, तिर्यंच, थलचर, खेचर, जलचर होते हैं। वे भगवान पंचेन्द्रिय अर्थात् …