इन्द्रिय और कषायों के दोष से अथवा सामान्य ध्यानादिक से विरक्त होकर जो साधु चारित्र से भ्रष्ट होता है वह साधु सार्थ से अलग होता है। इन्द्रिय विषय और कषाय के वशीभूत कितनेक भ्रष्ट मुनि सर्व दोष से युक्त होकर …
संसार में परिभ्रमण करता हुआ जीव कर्म से प्रेरित होकर रंगभूमि में अभिनय करने वाले अभिनेता के समान अनेक रूपों को धारण करता है। किसी का पिता होकर लान्तर में उसी जीव का भाई, पुत्र और पौत्र भी होता है। …