विरुद्ध अनेक पक्षों का अवगाहन करने वाले ज्ञान को संशय कहते हैं। जैसे- दूर स्थान से सूखा वृक्ष देखकर यह क्या वस्तु है ? स्थाणु है या पुरुष ? ऐसे अनिश्चिय रूप ज्ञान को संशय कहते हैं अथवा अनेक धर्मों …
सम्यग्दर्शन, ज्ञान चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षमार्ग है या नहीं, इस प्रकार किसी पक्ष को स्वीकार करना संशय मिथ्यादर्शन है। जिनदेव होंगे या शिवदेव होंगे यह संशय मिथ्यादर्शन है। शुद्ध आत्मतत्त्वादिक का प्रतिपादित ज्ञान क्या वीतराग सर्वज्ञ द्वारा कहा हुआ …
यह असत्यमृषा का आठवां प्रकार है जैसे यह ठूंठ है अथवा मनुष्य है इत्यादि । इसमें दोनों में से एक की सत्यता है और इतर का अभाव है। इस वास्ते उभयपना इसमें है।
सामान्य शब्दत्व और दृष्टान्त घट दोनों के ऐन्द्रियकत्व समान होने पर नित्य-अनित्यों के साधर्म्य से संशय सम प्रविषेध उठा दिया जाता है। जैसे शब्द अनित्य है, प्रयत्न से उत्पन्न होने वाले घट की भाँति । ऐसा कहने पर हेतु में …
जो हेतु विपक्ष में संशयरूप से रहे उसे संशयानेकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। जैसे सर्वज्ञ नहीं हैं क्यों कि वक्ता हैं। दूसरा उदाहरण यह है कि गर्भस्थ मैत्री का पुत्र श्याम होना चाहिए क्योंकि मैत्री का पुत्र दूसरे मैत्री के पुत्रों …