अक्षर, पद, वाक्य आदि का शुद्ध पाठ करना व्यंजनाचार है।
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अक्षर, पद, वाक्य आदि का शुद्ध पाठ करना व्यंजनाचार है।
व्यावृत्ताकार अर्थात् भेदधोतक बुद्धि और सत्य प्रयोग के विषय भूत परस्पर विलक्षण उत्पत्ति स्थिति, विपरिणाम, वृद्धि हृास, क्षय, विनाश, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, दर्शन, संयम, लेश्या, सम्यक्त्व आदि व्यतिरेक धर्म है। भिन्न-भिन्न पदार्थों में रहने वाले विलक्षण …
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