अव्यक्त शब्द आदि के समूह को व्यंजन कहते हैं अथवा व्यंजन का अर्थ वचन है व्यंजन अर्ध मात्रा वाला होता है ।
शरीर में स्थित तिल या मसा आदि व्यंजन को देखकर दुख-सुखादि को जान लेना व्यंजन – निमित्त – ज्ञान है।
एक धर्मी में दो व्यंजन पर्याय को विषय करने वाला व्यंजन पर्याय नैगमनय है । जैसे- आत्मा में सत्य और चेतन है, यहाँ विशेषण होने के कारण सत्ता की गौण रूप से और विशेष होने के कारण चेतन की प्रधान …
जो स्थूल है, शब्द के द्वारा कही जा सकती है और चिरस्थायी हैं उसे व्यंजन- पर्याय कहते हैं। जैसे- जीव की सिद्ध पर्याय या मनुष्य की आदि पर्याय ।
गणधर आदि आचार्यों ने समस्त दोषों से रहित सूत्रों का निर्माण किया है उनको दोष रहित ही पढ़ना व्यंजन शुद्धि है।