आयु, इन्द्रिय और श्वांसोच्छ्वास का जुदा कर देना वध है अथवा डंडा, चाबुक, बेंत आदि से प्राणियों को मारना वध है। अहिंसाणुव्रत के अतिचार में वध का यही अर्थ ग्रहण करने योग्य है क्योंकि प्राणों का वियोग करने पर व्रत …
तीक्ष्ण अस्त्र आदि के द्वारा मारपीट या घात किए जाने पर उसे समतापूर्वक सहन करना वध परीषह जय है तीक्ष्ण तलवार, मूसल व मुद्गर आदि के द्वारा ताड़न या पीड़न से जिनका शरीर तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है तथापि मारने वालों …
वध्यघातक भाव विरोध सप्र और नेवले या अग्नि और जल में होता है। यह दो विद्यमान पदार्थों में संयोग होने पर होता है। संयोग के बाद जो बलवान होता है वह निर्बल को बाधित करता है। अग्नि से असंयुक्त जल …