जगश्रेणी के वर्ग को लोकप्रतर कहते हैं ।
जिसमें आठ व्यवहार, चार बीज – राशि परिकर्म आदि गणित और समस्त श्रुत सम्पदा का वर्णन है वह लोकबिंदुसार नामक चौदहवां पूर्व है ।
परमात्मा के निर्मल केवलज्ञान रूपी नेत्र में दप्रण के समान जीव आदि समस्त पदार्थ प्रतिबिंबित आलोकित होते हैं इसलिए शुद्धात्मा ही वास्तव में लोक है और निज शुद्धात्मा की भावना से उत्पन्न परम आल्हाद रुपी अमृत के आस्वाद से जो …