लघु अर्थात् शीघ्र अर्थात् अन्तर्मुहूर्त में
अपर्याप्तक नामकर्म के उदय से जो जीव अपने योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण किए बिना ही श्वांस के अठारहवें भाग में मरण को प्राप्त हो जाता है अर्थात् जिसके एक भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती उसे लब्ध्यपर्याप्तक कहते हैं ।