लोकेषणा रहित तप आदि सार्थक हैं। लोक में यश सत्कार और ख्याति पूजा आदि की अपेक्षा रखना लोकेषणा है ।
प्रमाण दो प्रकार का है- लौकिक और लोकोत्तर । लोकोत्तर प्रमाण में साकार और भावप्रमाण में अनाकार के भेद से दो का प्रकार है। मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय तथा केवलज्ञान के भेद से भाव प्रमाण पाँच प्रकार का है। …
लोक शब्द का अर्थ लोक ही है। जिसमें जीव आदि पदार्थ देखे जाते हैं, उसे लोक कहते हैं। वह तीन प्रकार का है- उर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक । जिसके द्वारा इस लोक का कथन किया जाता है, वह सिद्धांत लोकोपवाद …