आहार करते समय यदि साधु को अपने शरीर से अथवा दूसरे के शरीर से रक्त बहता हुआ दिख जाए तो यह रूधिर नाम का अन्तराय है।
जिसमें सिंह, घोड़ा, हरिण आदि की आकृति धारण करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र एवं तपश्चरण का तथा चित्र, काष्ठ, लेप्य और लयनकर्म के लक्षण का वर्णन किया गया है उसे रूपगता- – चूलिका कहते हैं।