कुष्ठ आदि विशेष प्रकार के रोग हो जाने पर जिन दीक्षा की योग्यता नहीं रहती।
शरीर में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाने पर भी रोगजन्य पीड़ा को समतापूर्वक सहन करना रोग परीषह जय है। जो शरीर के संस्कार से रहित है, गुणरूपी रत्नों के संचय, सवंर्धन, संरक्षण और संधारण में कारणभूत होने से …