रूप शब्द के अनेक अर्थ हैं। रूप का अर्थ आँख के द्वारा ग्रहण किया जाने योग्य शुक्लादि वर्ण है रूप का स्वभाव भी है जैसे अनन्तरूप अर्थात् अनन्त स्वभाव। अथवा अन्तरंग में शुद्धात्मानुभूति की द्योतक निर्ग्रन्थ और निर्विकार साधुओं की …
जिसमें सिंह, घोड़ा, हरिण आदि की आकृति धारण करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र एवं तपश्चरण का तथा चित्र, काष्ठ, लेप्य और लयनकर्म के लक्षण का वर्णन किया गया है उसे रूपगता- – चूलिका कहते हैं।
आकाश और स्फटिक मणि के समान स्वच्छ एवं निर्मल शरीर वाले मनुष्यों व देवों के मुकुटों में लगी हुई मणियों की किरणों के समूह से शोभायमान है चरणकमल जिनके ऐसे श्रेष्ठ आठ प्रातिहार्यो से युक्त, समवसरण में विराजमान अनन्त चतुष्टय …