जिन्हें भीषण रूप की विक्रिया करना प्रिय है, वे राक्षस कहलाते है । भीम, महाभीम, विनायक, उदक, राक्षस, राक्षस-राक्षस और सातवाँ बम राक्षस इस प्रकार के भेद देवों के है।
चारित्र मोहनीय कर्म के उदय से इष्ट पदार्थों में प्रीति रूप परिणाम होना राग है रागभाव चारित्रावरण मोहनीय कर्म के उदय से होता है तथा यह राग अप्रमत्त गुणस्थान के पहले पाया जाता है अप्रमत्त गुणस्थान से ऊपर के गुणस्थानों …
संसिद्धि राध ( आराधना, प्रसन्नता, पूर्णता) सिद्ध साधित और आरातीत ये एकार्थवाची शब्द हैं । पर द्रव्य के परिहार से शुद्ध आत्मा की सिद्धि अथवा साधन सो राध है।