वस्तु का जैसा स्वरूप नहीं है, वैसा ग्रहण हो जाना भ्रान्ति है । यथार्थ पदार्थ को देखने पर इन्द्रियों में रोग आदि हो जाने के कारण ही चाँदी में सीप के ज्ञान की तरह पदार्थों में भ्रम रूप ज्ञान होता …
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