सम्यग्दर्शन, ज्ञान व चारित्र की प्राप्ति होना बोधि है।
रत्नत्रय-प्राप्ति की दुर्लभता का चिंतन । यह बारह भावनाओं में ग्यारहवीं भावना है । इसमें मनुष्य भव, आर्यखंड में जन्म, उत्तम कुल, दीर्घायु की उपलब्धि, इंद्रियों की पूर्णता, निर्मल वृद्धि, देव, शास्त्र-गुरु का समागम, दर्शन विशुद्धि, निर्मलज्ञान, चारित्र, तप और …
निगोद से निकलना, त्रस पर्याय पाना और संज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य होना अत्यन्त दुर्लभ है। कदाचित् इसकी प्राप्ति हो जाए तो उत्तम देश, कुल और निरोगता प्राप्त होना कठिन है । इस सबके मिल जाने पर भी विषय सुख से विरक्त …