संसार अवस्था में देशघाती और सर्वघाती प्रकृतियों का जघन्य से उत्कृष्ट पर्यंत जो अनुभाग होता है, उससे उपयुक्त स्पर्धक, पूर्वस्पर्धक कहलाते हैं।
जो वस्तु का विवेचन मूल से परिपाटी द्वारा किया जाता है, उसे पूर्वानुपूर्वी कहते हैं। जैसेऋषभनाथ की वन्दना करता हूँ से लेकर अजितनाथ की वन्दना करता हूँ इत्यादि क्रम से ऋषभनाथ को आदि लेकर महावीर स्वामी पर्यंत तक क्रमवार वन्दना …