एक ही महात्मा है सोई पुरुष है देव है सर्व विषै व्यापक है। सर्वांगपनै निगूढ़ क अगम्य है, चेतना सहित है, निर्गुण है, परम उत्कृष्ट है। ऐसे एक आत्मा ही करि सबकौं मानना सो आत्मवाद का अर्थ है। ये पुरुष …
आत्म द्रव्य पुरुषाकार नय से जिसकी सिद्धि यत्न साध्य है, ऐसा है । जिस पुरुषाकार से नींबू का वृक्ष प्राप्त होता है, ऐसा पुरुषाकार वादी की भाँति ।
आलस्यकरि संयुक्त होय, उत्साह रहित होय, जो किछु भी फल को भोगवै नाहीं । जैसे- स्तन का दूध उत्तम ही तै, पीवने में आवे । पौरुष बिना पीवने में न आवे तैसे सर्व पौरुष करि सिद्धि है, ऐसा पौरुषवाद है।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय -आचार्य अमृतचन्द्र रचित ग्रंथ है । इसमें कुल 14 अधिकार कुल 226 गाथाएं है ।