जिसमें भवनवासी आदि चार प्रकार के देवों में उत्पत्ति के कारणभूत दान, पूजा आदि अनुष्ठानों का वर्णन किया गया है वह पुण्डरीक नाम का अंगबाह्य है।
पाप के उदय से मिले अपंग या रूग्ण शरीर तथा मंद बुद्धि आदि होने पर भी पुण्य-कार्य में लगे रहना पुण्यानुबंधी-पाप का उपभोग है।
पुण्य के उदय से प्राप्त बुद्धि, कौशल, निरोग शरीर आदि क्षमताओं को पुण्यार्जन में लगा देना, यह पुण्यानुबंधी – पुण्य का उपभोग है।