मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थ्य भाव से वृद्धि को प्राप्त होते हुए समस्त हिंसा का त्याग करना जैनों का पक्ष कहलाता है इसलिए ग्रहस्थ धर्म में जिनेन्द्र भगवान के प्रति श्रद्धा रखता हुआ जो श्रावक हिंसा आदि पाँच पापों को …
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