जो वस्तु का विवेचन ऊपर से अर्थात् अन्त से लेकर आदि तक परिपाटी क्रम से (प्रतिलोम पद्धति से) किया जाता है, उसे पश्चातानुपूर्वी उपक्रम कहते हैं।
यदि साधु आहार ग्रहण करने के बाद दाता की प्रशंसा करता है तो यह पश्चात्स्तुति नामक दोष है।
जो वस्तु का विवेचन ऊपर से अर्थात् अन्त से लेकर आदि तक परिपाटी क्रम से (प्रतिलोम पद्धति से) किया जाता है, उसे पश्चातानुपूर्वी उपक्रम कहते हैं।
यदि साधु आहार ग्रहण करने के बाद दाता की प्रशंसा करता है तो यह पश्चात्स्तुति नामक दोष है।
शब्दाद्वैतवादी वाणी चार प्रकार की मानते हैं। पश्यन्ती, मध्यमा, वैखरी सूक्ष्मा । पश्यन्ती जामें विभाग नाहीं, सर्व तरफ एक संकोचा है क्रम जानो ऐसी पश्यन्ती कहिये। मध्यमा वक्ता की बुद्धि तो जाको उपादान कारण है। बहुरि श्वांसोच्छवास को उलंघि अनुक्रमतें …
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