जो रोंथते हैं, वे पशु कहलाते हैं।
जो वस्तु का विवेचन ऊपर से अर्थात् अन्त से लेकर आदि तक परिपाटी क्रम से (प्रतिलोम पद्धति से) किया जाता है, उसे पश्चातानुपूर्वी उपक्रम कहते हैं।
यदि साधु आहार ग्रहण करने के बाद दाता की प्रशंसा करता है तो यह पश्चात्स्तुति नामक दोष है।