जो राग से परद्रव्य में शुभ या अशुभ भाव करता है वह जीव स्वचारित्र भ्रष्ट ऐसा परचारित्र का आचरण वित होते हैं, उस भाव द्वारा वह जीव परचारित्र है। जो व्यक्ति शुद्धात्म द्रव्य से परिभ्रष्ट होकर रागभाव रूप से परिणमन …
आत्मा को यह सुख-दुःख स्वयं भोगने नहीं होते, अपितु काल, स्वभाव, नियति, यदृच्छा, पृथ्वी आदि चार भूत, योनिस्थान, पुरुष व चित्त इन नौ बातों के संयोग से होता है, क्योंकि आत्मा दुःख-सुख भोगने में स्वतंत्र नहीं है। आत्मद्रव्य अस्वभावनय से …
परत्व और अपरत्व क्षेत्रकृत, गुणकृत और कालकृत ऐसे तीन प्रकार का है। जैसे दूरवर्ती पदार्थ पर और समीपवर्ती पदार्थ अपर कहा जाता है, यह क्षेत्रकृत परत्व और अपरत्व है। अहिंसा आदि प्रशस्त गुणों के कारण धर्म पर और अधर्म अपर …
परप्रत्यय भी उत्पाद और व्यय होता है, अतः ये धर्मादि द्रव्य क्रमशः अश्वादिकी गति स्थिति और अवगाहन में कारण हैं। चूँकि इन गति आदि में क्षण-क्षण में अंतर पड़ता है इसलिए इनके कारण भी भिन्न–भिन्न होना चाहिए । इस प्रकार …