शुद्धोपयोग के अपरनाम ।
केवलज्ञान के द्वारा प्रकाशित जीवादि पदार्थ – विषयक ज्ञान से जिनकी आत्मा विशुद्ध है वे परमावगाढ़ रूचि सम्यग्दृष्टि है। इनका सम्यग्दर्शन ही परमावगाढ़ – दर्शन है।
जो नाभि स्कन्ध से निकला हुआ तथा हृदय कमलों से होकर द्वादशान्त ( तालुरंध्र) में विश्रान्त हुआ (ठहरा हुआ) पवन है, उसे परमेश्वर जानो, क्योंकि वह पवन का स्वामी है।