पदज्ञान के उपरान्त एक अक्षर की वृद्धिकर पद समास से लेकर पूर्व- समास पर्यंत समस्त द्वादशांग में स्थित है।
एक अक्षर से प्रारम्भ करके अनेक प्रकार के पंचपरमेष्ठी वाचक पवित्र मंत्रपदों का उच्चारण करके जो ध्यान किया जाता है उसे पदस्थ – ध्यान कहते हैं, जैसे- एकाक्षरी मंत्र- ॐ, दो अक्षर वाला- अर्हं या सिद्ध, चार अक्षर वाला- अरहंत, …
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अपने गुरू के उपदेश से एक बीज पद को सुनकर समस्त ग्रन्थ को जानने में समर्थ होते हैं उसे पदानुसारी ऋद्धि कहते हैं ।