1. मैत्री, प्रमोद, कारूण्य और माध्यस्थभाव से जो वृद्धिंगत हुआ है ऐसा समस्त हिंसा का परित्याग करना जैनों का पक्ष कहलाता है । 2. जो साध्य से युक्त होकर हेतु आदि के द्वारा व्यक्त किया जाए उसे पक्ष कहते हैं …
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