पापादान आदि रूप प्रवृत्ति के लिए सम्पत्ति देना निसर्ग-क्रिया है।
जो परोपदेश के बिना सहज :उत्पन्न होता है, उसे निसर्गज- सम्यग्दर्शन कहते हैं।
पापादान आदि रूप प्रवृत्ति के लिए सम्पत्ति देना निसर्ग-क्रिया है।
जो परोपदेश के बिना सहज :उत्पन्न होता है, उसे निसर्गज- सम्यग्दर्शन कहते हैं।
मन, वचन और शरीर के द्वारा दुष्ट प्रवृत्ति करना उसको निसर्गाधिकरण कहते हैं ।
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