जीव के द्वारा बांधे गए जिस कर्म का उत्कर्षण या अपकर्षण तो संभव है, पर संक्रमण होना संभव नहीं है उसे निधत्ति कर्म कहते हैं। इतना अवश्य है कि जिनबिंब के दर्शन से कर्मों का निधत्तिपना नष्ट हो जाता है।
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