नास्तिक्य दो प्रकार का होता हैप्रज्ञासत् व प्रज्ञप्तिसत्, अर्थात् बाह्य व अध्यात्मिक । बाह्य में दृष्ट घट स्तम्भादि ही सत् है, इनके अतिरिक्त जीवाजीवादि तत्त्व कुछ नहीं है। ऐसी मान्यता वाले चार्वाक प्रज्ञासत् नास्तिक है, अतरंग में प्रतिभाषित संवित्ति या …
नास्तित्व नय से पर द्रव्य क्षेत्र काल व भाव से नास्तिक वाला है, जैसे कि द्रव्य की अपेक्षा अलोहमयी, क्षेत्र की अपेक्षा संधान दशा में न रहे हुए और भावों की अपेक्षा अलक्ष्योन्मुख पहले वाले बाण का नास्तित्व है। र्थात् …