हिंसा आदि दोषों से रहित निष्परिग्रह रूप जो बालकवत् सहज निर्विकार नग्नता है वह मोक्ष का अनिवार्य साधन है। इस नग्न दिगम्बर रूप को धारण करने वाले जो साधु काम विकार को जीत लेते हैं और अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन …
आहार के लिए जाते हुए साधु को यदि नाभि से नीचा मस्तक करके निकलना पड़े तो यह नाभ्यधोनिर्गम नाम का अंतराय कहलाता है।
जन्म से 12 वें दिन, पूजा व द्विज आदि के सत्कार पूर्वक, अपनी इच्छा से या भगवान के 1008 नामों में से घट पत्र विधि द्वारा (Ballat paper System) बालक का कोई योग्य नाम छाँटकर रखना।