जिन्होंने असंयम का त्याग किया है, मान–अपमान, सुख-दुख, लाभ-अलाभ, तृण- स्वर्ण, इत्यादि में जिनकी बुद्धि राग-देष से रहित हो गई है, इन्द्रिय और मन को जिन्होंने अपने वश में किया है। माता की भाँति युक्ति का जिन्होंने आश्रय लिया है। …
जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे गए वीतराग धर्म के बिना यह जीव अनादि काल से दुख का अनुभव करते हुए संसार में भ्रमण कर रहा है। धर्म को धारण करने वाले जीव को उत्तम सुख की प्राप्ति होना निश्चित है। …
धर्म में स्थिर रहना और विपत्ति आने पर भी धर्म से विमुख नहीं होना धर्मानुराग है।
‘जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहा गया अहिंसा धर्म गुणकारी नहीं है, इसका पालन करने वाले जीव असुर होते हैं इस प्रकार धर्म की निंदा करना धर्म अवर्णवाद है। –