धर्म नाम स्वभाव का है। जीव का स्वभाव आनंद है, इंद्रिय सुख नहीं। अत: वह अतींद्रिय आनंद ही जीव का धर्म है, या कारण में कार्य का उपचार करके, जिस अनुष्ठान विशेष से उस आनंद की प्राप्ति हो उसे भी …
जो जीव व पुद्गल के गमन में सहायक है उसे धर्म-द्रव्य कहते हैं। यह द्रव्य समूचे लोक में व्याप्त है। यह अचेतन और अरूपी है। इसका कार्य जल की तरह है जो मछली को गमन करने में सहायक है।