धर्म नाम स्वभाव का है। जीव का स्वभाव आनंद है, इंद्रिय सुख नहीं। अत: वह अतींद्रिय आनंद ही जीव का धर्म है, या कारण में कार्य का उपचार करके, जिस अनुष्ठान विशेष से उस आनंद की प्राप्ति हो उसे भी …
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र ही धर्म है या जो जीवों को संसार के दुःखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुँचावे, वह धर्म है। अथवा वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। धर्म दो प्रकार का है- व्यवहार धर्म और निश्चय धर्म। …