जिसमें द्वीप और समुद्रों का प्रमाण तथा द्वीप व समुद्र के अन्तर्भूत अन्य वस्तुओं का भी वर्णन किया गया है वह द्वीप-सागर-प्रज्ञप्ति है।
निश्चय से द्वैत ही संसार व अद्वैत ही मोक्ष है। यह दोनों के विषय में संक्षेप से कथन है। जो चरम सीमा को प्राप्त है जो भव्य जीव धीरे-धीरे इस प्रथम (द्वैत) पद से निकलकर दूसरे अद्वैत पद का आश्रय …