निश्चय से द्वैत ही संसार व अद्वैत ही मोक्ष है। यह दोनों के विषय में संक्षेप से कथन है। जो चरम सीमा को प्राप्त है जो भव्य जीव धीरे-धीरे इस प्रथम (द्वैत) पद से निकलकर दूसरे अद्वैत पद का आश्रय …
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