लोक द्रव्यों का समूह है और वे द्रव्य छह मुख्य जातियों में विभाजित हैं। गणना में वे अनंतानंत हैं। परिणमन करते रहना उनका स्वभाव है, क्योंकि बिना परिणमन के अर्थक्रिया और अर्थक्रिया के बिना द्रव्य के लोप का प्रसंग आता …
सब जीवों की उत्पत्ति के मूल कारण कार्मण शरीर को द्रव्यकर्म कहते हैं। जीव के जो द्रव्यकर्म हैं वो पुद्गल के हैं। उनके अनेक भेद हैं। उनमें से आठ प्रकार के कर्मस्कन्धों के भेद द्रव्यकर्मवर्गणा है। द्रव्यकर्म दो प्रकार का …
आगामी पर्याय की योग्यता वाले पदार्थ को द्रव्य कहते हैं। जैसे- आगे सेठ बनने वाले बालक को अभी से सेठ कहना, यह द्रव्य निक्षेप है। द्रव्य निक्षेप के दो भेद हैं- आगम द्रव्य निक्षेप और नो-3 -आगम द्रव्य निक्षेप । …