वरदान पाने की आशा से रागी- द्वेषी देवी-देवताओं को सच्चे देव मानकर पूजा अर्चना करना देवमूढ़ता है।
‘स्वर्गलोक में रहने वाले देवी-देवता सुरापान करते हैं और मांस खाते हैं इस प्रकार देवगति के देवों पर मिथ्या आरोप लगाना यह देवावर्णवाद है।
चारित्र दो प्रकार का है- सकलचारित्र विकलचारित्र। समस्त प्रकार के परिग्रह से रहित सकल चारित्र और गृहस्थों के विकल चारित्र अथवा देशचारित्र होता है।