दिशाओं की तरफ देखना अथवा दूसरे उसकी ओर देखे तब अधिक उत्साह से स्तुति, वन्दना आदि करना दृष्ट दोष है।
प्रसिद्ध होकर यदि वह नीरोग करता हूँ इस प्रकार देखता है, सोचता है, व क्रिया करता है, तो नीरोग करता है। तथा प्रसन्नतापूर्वक अवलोकन से अन्य भी शुभ कार्य को करने वाला दृष्टि अमृत कहलाता है।
जिस ऋद्धि से तिक्तादि रस और विष से युक्त विविध प्रकार वचन मात्र से ही निर्विषता को प्राप्त हो जाता है अथवा उग्र विष से मिला हुआ भी आहार जिनके मुख में जाकर निर्विष हो जाता है, अथवा जिनके मुख …
ये तीसरी दर्शन क्रिया रूप शक्ति है, जिसमें ज्ञेय रूप आकार का विशेष नहीं है। ऐसे दर्शनोपयोगीमयी सत्तामात्र पदार्थ से उपयुक्त होने स्वरूप वाली ।