जो पदार्थ क्षेत्र से दूर हैं वे दूरार्थ कहलाते हैं, जैसे मेरू आदि । भूत भविष्य कालवर्ती राम, रावण चक्रवर्ती आदि काल की अपेक्षा से अत्यन्त दूर होने से दूरार्थ कहलाते हैं ।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु को रसना- इन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से भी संख्यात योजन दूर स्थित खट्टे मीठे आदि अनेक प्रकार के रसों का स्वाद लेने की सामर्थ्य प्राप्त होती है उसे दूर – स्वादित्व – ऋद्धि …