जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु को स्पर्शन–इन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से भी संख्यात योजन की दूरी पर स्थित ठंडा, गर्म आदि सभी प्रकार के स्पर्श को जान लेने की सामर्थ्य प्राप्त होती है उसे दूर-स्पर्शत्व-ऋद्धि कहते हैं।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु को घ्राण-इन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से भी संख्यात योजन दूर स्थित गंध को जानने की सामर्थ्य प्राप्त होती है उसे दूराघ्राणत्व-ऋद्धि कहते हैं।
जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु को श्रोत- इन्द्रिय के उत्कृष्ट विषय क्षेत्र से भी संख्यात योजन दूर स्थित ध्वनि या शब्दों को सुनने की सामर्थ्य प्राप्त होती है उसे दूराद्श्रवणत्व – ऋद्धि कहते हैं।
पल्य की उत्कृष्ट असंख्यात का भाग दिये जो प्रमाण आवै तातैं एक-एक घटता क्रम करि पल्य कौ जघन्य परीतासंख्यात का भाग दिये जो प्रमाण भावै तहाँ पर्यंत एक-एक वृद्धि के द्वारा जितने विकल्प हैं ते सब दूरापकृष्टि के भेद हैं। …