जिन शास्त्रों या पुस्तकों में हंसी-मजाक, कामभोग आदि मन को कलुषित करने वाली बातों का वर्णन किया गया हो उनको पढ़ना या सुनना अथवा दूसरे के दोषों की चर्चा करना या सुनना दुःश्रुति नाम का अनर्थदण्ड का एक भेद है।
अवसर्पिणी के छठवें और उत्सर्पिणी के प्रथम काल का नाम दुःषमा- दुःषमा है। अवसर्पिणी के इस छठे काल में मनुष्यों की अधिकतम आयु बीस वर्ष और ऊँचाई साढ़े तीन हाथ रहती है। मनुष्यों का नैतिक पतन होने से वे पशुवत् …
अवसर्पिणी के चतुर्थकाल और उत्सर्पिणी के तृतीय काल का नाम दुःषमा- सुषमा है। अवसर्पिणी के इस चतुर्थकाल में मनुष्य असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन षट् कर्मों के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। मनुष्यों की अधिकतम …
काययोग दुष्प्रणिधान, वचनयोगदुष्प्रणिधान, मनोयोग दुष्प्रणिधान इस प्रकार तीन प्रकार का दुष्प्रणिधान है। सामायिक करते समय शरीर में स्थिरता न होना अशुभ वचन बोलना और मन में खोटे विचार लाना यह मन-वचन-काय का दुष्प्रणिधान है।