अवसर्पिणी के पंचमकाल और उत्सर्पिणी के द्वितीयकाल का नाम दुःषमा है। अवसर्पिणी के इस पंचमकाल में मनुष्यों की अधिकतम आयु एक सौ बीस वर्ष और ऊँचाई सात हाथ होती है। द्वादशांग रूप श्रुतज्ञान का विच्छेद हो जाता है। तीर्थंकर आदि …
अवसर्पिणी के छठवें और उत्सर्पिणी के प्रथम काल का नाम दुःषमा- दुःषमा है। अवसर्पिणी के इस छठे काल में मनुष्यों की अधिकतम आयु बीस वर्ष और ऊँचाई साढ़े तीन हाथ रहती है। मनुष्यों का नैतिक पतन होने से वे पशुवत् …
अवसर्पिणी के चतुर्थकाल और उत्सर्पिणी के तृतीय काल का नाम दुःषमा- सुषमा है। अवसर्पिणी के इस चतुर्थकाल में मनुष्य असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प इन षट् कर्मों के द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। मनुष्यों की अधिकतम …
काययोग दुष्प्रणिधान, वचनयोगदुष्प्रणिधान, मनोयोग दुष्प्रणिधान इस प्रकार तीन प्रकार का दुष्प्रणिधान है। सामायिक करते समय शरीर में स्थिरता न होना अशुभ वचन बोलना और मन में खोटे विचार लाना यह मन-वचन-काय का दुष्प्रणिधान है।
उपकरणादि वस्तु बिना साफ किये ही जमीन पर रख देना अथवा जिस पर उपकरणादिक रखे जाते हैं उसको अर्थात् चौकी जमीन बगैरह को अच्छी तरह साफ नहीं करना, इसको दुष्प्रमृष्टनिक्षेपाधिकरण कहते हैं।