गृह और परिग्रह तथा उनके ममत्व से जो रहित है, बाईस परिषह और कषायों को जिनने जीता है। पापारंभ से जो रहित हैं, ऐसी प्रव्रज्या या दीक्षा जिनेन्द्र देव ने कही है। जिसमें शत्रु-मित्र में, प्रशंसा – निंदा में, लाभ-अलाभ …
तीर्थंकर की दीक्षा के अवसर पर होने वाला उत्सव दीक्षा या तप कल्याणक कहलाता है। राजवैभव के बीच अचानक कोई कारण पाकर तीर्थंकर को वैराग्य उत्पन्न हो जाता है । तीर्थंकरों को वैराग्य उत्पन्न होते ही लौकान्तिक देव आकर उनके …